Saturday 10 January, 2009

फूल , तितली और ये सुनहरी धूप ..........


इस सुहानी धूप में.................
आज तितली अलग ही नजर आ रही ,
मन मनो कह रहा हें ...........
आज मै इस गगन में झूम - झूम नाचू ,
इधर जाउ उधर जाऊ ............
इस फूल जाऊ उस फूल जाऊ ,
aaj इस प्रकृति की गोद में आकर बैठ जाऊ ,
और सबको अपना गीत सुनाऊ..........
और ये फूल इतना सुंदर हें मानो.............
इश्वर ने इसे बड़ी फुर्सत से बनाया हो............
जिसमे चार चाँद और लग जाते जब.............
जब इस सुनहरी धूप में , मै इन फूलो पर बैठ जाती हू...........
और अपनी बाहों को फेलाकर जब नाचती हू.........
और इस फूल की सुगंध लेकर इस ............
जहा मै मदहोश हो जाऊ...............

4 comments:

  1. आपकी प्रकृति के प्रति दृष्टि सम्यक है आप सुन्दरता को सही पकड़ती हैं.

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  2. आज की मतलबी दुनिया से ,बचाकर इतने अनमोल मोती पिरोने के लिए आपको साधुवाद और स्वागत !!!!!

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  3. iss kavita main jo umang aapne bhari hai ...bahut acchi lagi , dhyanbaad likhne k liye

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