बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........
मेरे सपनो का घर ,
जिस घर में रहना हें, सारी उमर,
जहा नए- रिश्ते ,नाते बनते ,
जहा हर कोई लगे नया ,अपना सा कोई,
जिनके साथ हें रहना , वो लगे सारे अब अपने,
जिस घर में बचपन से रहे , अब वो घर लगे बेगाना सा,
बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........
अब नये सिरे से जिन्दगी बितानी हें,
जहा सब हें लेकिन लगता अब भी सुना हें ,
माँ तेरे हाथो का खाना , पापा प्यार भरी थपकी........
याद आते हें वो दिन ,
लेकिन बाबुल , अब तेरा घर आंगन छोड़ .............
मुझे नई दुनिया बसानी हें ,
जहा हर कोई लगे नया ,अपना सा कोई................
बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........
बालिका वधु से ज्यादा सुंदर लगेंगी आप, कविता अच्छी है तस्वीर भी।
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