Wednesday 7 January, 2009

बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........

बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........


मेरे सपनो का घर ,


जिस घर में रहना हें, सारी उमर,


जहा नए- रिश्ते ,नाते बनते ,


जहा हर कोई लगे नया ,अपना सा कोई,



जिनके साथ हें रहना , वो लगे सारे अब अपने,

जिस घर में बचपन से रहे , अब वो घर लगे बेगाना सा,


बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........


अब नये सिरे से जिन्दगी बितानी हें,


जहा सब हें लेकिन लगता अब भी सुना हें ,


माँ तेरे हाथो का खाना , पापा प्यार भरी थपकी........


याद आते हें वो दिन ,


लेकिन बाबुल , अब तेरा घर आंगन छोड़ .............

मुझे नई दुनिया बसानी हें ,


जहा हर कोई लगे नया ,अपना सा कोई................


बाबुल का घर छोड, जाना हें पिया के घर...........

1 comment:

  1. बालिका वधु से ज्यादा सुंदर लगेंगी आप, कविता अच्छी है तस्वीर भी।

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