Tuesday 6 January, 2009

पापा की परी...........माँ की लाडो.............

मै भगवान् की सुकरगुजार हू , की उन्होंने इतने प्यारे माँ पापा की बेटी बनाकर भेजा हे इस प्यारी सी दुनिया मे तीन भाई की लाडली बहन हरदम उचल्कुद करने वाली। और भाई की माँ पापा से डाट पिटवाने वाली एक नटखट सी। याद आता हे वो दिन जब पहली बार साइकिल चलाते हुए घिर गई और इतनी सी चोट मे पापा ने भाई को जोर से डाट लगायी । तुम तो बड़े हो इसे साइकिल क्यों चलने दी अभी तो यह इतनी छोटी हे। मे आज भी पापा के लिए कभी बड़ी नही हुई । आज भी थोड़ा सा कुछ होते ही पापा घबरा जाते हे। वो बचपन के दिन, दिन भर मस्ती करते चाये धुप हो या बारिश , सर्दी के ठिठुरन भरे दिन हो..................... हर दम वही मस्ती , वही नाचना , गाना सहलिया के साथ गपशप लगानी । दिन ऐसा निकल जाता कुछ पता नही चलता। और सर्दी के ठिठुरन भरे दिनों मे माँ अलाव लगा देती तो बस.................. वही बेठ जाते। फ़िर क्या माँ के हाथो का घरम खाना ...........और पापा का अपने हाथो से खिलाना । कहना खाते खाते भाई की चुगली पापा से करना और फ़िर भाई को डाट पड़ती तो उसके मजे लेना । क्या दिन थे वो भी..............

हर दिन मे कुछ बात थी और , और हर बात मे कुछ खास अंदाज था ..............

हर दिन की सुबह भाई की चुगली से होती और पापा उसे दाटते तो उसके मजे लेना । और माँ की लाडली बेटी तो हू ही तो बस ...............यह बचपन के दिन............लेकिन अब बस इन दिनों की यादे हें।

अब तो इतने व्यस्त हो गए हें की, जिन्दगी के नए रस्ते खोजने मे ।

माँ पापा की चाव मे ये बचपन कैसे निकल गया पता ही नही चला लेकिन अभी तो तो bhut चलना हें। और वैस भी जिन्दगी रुकने का नाम नही ...........................

चलते रहो अभी आपको बहुत उचे मुकाम पर जाना हें , बस माँ पापा का आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहे ................

10 comments:

  1. बचपन के दैनिक जीवन की छोटी-छोटी बातें कितनी सुखद और सुंदर लगती हैं .
    अपने बचपन के बहाने से हमें अपना बचपन याद दिलाने के लिए धन्यवाद.
    इसी प्रकार लिखती रहिये.
    शुभकामनाएं .

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  2. निकले जो घर से माँ की दुआएँ लिए हुए।
    बढ़कर हमारे रास्ते आसान हो गए।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. पूर्णिमा जी, बहुत सुन्दर लिखा आपने....
    सचमुच अगर माता-पिता एवं बढे बुजुर्गों का शुभाशीष आपके साथ हो तो जीवन पथ नितांत सुगम हो सकता है.
    खूब लिखें,अच्छा लिखें

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  4. Bachpan k din bhi kya din the............
    bachpan ki yaad dilane k liye shukriya.

    ----------------------------------"VISHAL"

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  5. Hye Purnima (Papa ki pari)
    kafi achcha likha hai.
    kabhi yaha bhi aaye...
    http://jabhi.blogspot.com

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  6. ब्लोगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नई ऊंचाइयां और नए व गहरे अर्थ मिलें और विद्वज्जगत में उनका सम्मान हो.
    कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर एक नज़र डालने का कष्ट करें.
    http://www.hindi-nikash.blogspot.com

    सादर-
    आनंदकृष्ण, जबलपुर.

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  7. भावुक रचना ...पढ़कर अच्छा लगा

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  8. और हाँ आप ना ये word verification हटा दें ताकि comment देने में आसानी हो और ज्यादा से ज्यादा लोग आपको कमेन्ट दे सके ...काफ़ी लोग शायद इसी कारण देते भी न हो

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  9. रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति

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  10. रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति

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