तो मै कहूँगी
हा मैंने इश्वर को देखा हें
मेरी माँ में
जब पहली बार
इस दुनिया में आई
और आँख खोली तो
माँ को देखा
माँ की मंद मंद मुस्कान को देखा
मेरी पहली गुरु
मेरी माँ ही हें
जिन्होंने हर कदम
पर मेरा साथ दिया
माँ मेरी सहेली बनी
सारा काम छोड़ कर
घंटो माँ से बातें करती
जब मै बिमार हो जाती
तो माँ मेरा माथा चूमती
और कहती बेटा
अभी ठीक हो जाओगी
जब मै रोने लगती तो
माँ अपार स्नेह देती और
प्यार से गले लगाती
अपनी परवाह किया बिना
दिन रात मेरी परीक्षा में जागती
माँ आप जैसा इस दुनिया
में कोई नहीं
माँ आप साक्षात् इश्वर हें...............

bahut sundar kavita hai par purnima ji aaj to photograph dekh kar smritiyon se na jaane kya samaksh aa khada hua ki aankhen bhar aayi, aapke ye do vriksh sadiav aapke liye chaayaa ban khade rahen. mera pranam
ReplyDelete''इश्वर हर जगह नहीं जा सकता इसलिए उसने माँ बनाई है. ''
ReplyDeleteएक खूबसूरत रचना है ठीक माँ की तरह.
झंकृत हो जाता है शरीर का रोम रोम बस सिर्फ एक इस शब्द से
''माँ''
इश्वर के बारे में पता तो तब चलता है जब हम दुनिया में आते है |
ReplyDeleteसही कहा है आपने माँ तो माँ है |
जिन्होंने हर कदम
ReplyDeleteपर मेरा साथ दिया
माँ मेरी सहेली बनी
सारा काम छोड़ कर
घंटो माँ से बातें करती
बहुत सुंदर कविता पूर्णिमा जी. एक सुंदर और सफल प्रयास.
http://avinash-theparaiah.blogspot.com/
हे ईश्वर! सबको माँ-जैसी शक्ति दो, ताकि सब, सब माताओं का सम्मान कर सकें। भारत माता का भी और अपनी मातृभाषा का भी।
ReplyDeleteवाह जी वाह पूर्णिमा जी बहुत ही अच्छा लिखा है सच में मां तो मां ही होती है भगवान से भी बडी बेटे बेटियां अनेक हो सकते हैं लेकिन मां तो हमेशा एक ही होती है
ReplyDeleteबेहतरीन भाव
वाह जी वाह पूर्णिमा जी बहुत ही अच्छा लिखा है सच में मां तो मां ही होती है भगवान से भी बडी बेटे बेटियां अनेक हो सकते हैं लेकिन मां तो हमेशा एक ही होती है
ReplyDeleteबेहतरीन भाव
कोई कहे की आप ने इश्वर को देखा हें
ReplyDeleteतो मै कहूँगी
हा मैंने इश्वर को देखा हें
मेरी माँ में
उम्दा विचार और सही भी....सुंदर ब्लॉग....
वाहवा... बेहतरीन कविता है, भाव भी और विचार भी.... आपको बधाई...
ReplyDeleteमां के प्रति आपकी संवेदना ने प्रभावित किया.
ReplyDeleteआपकी प्रोफ़ाइल पढी, फ़िर प्रभावित हुआ. बहुत सकारात्मक सोचती हैं आप.
अरे वाह.........मम्मी-डैडी और आप...........है ना..........मज़ा आ गया.........विचार पर भी और तस्वीर पर भी.........सच........!!
ReplyDeleteअरे वाह.........मम्मी-डैडी और आप...........है ना..........मज़ा आ गया.........विचार पर भी और तस्वीर पर भी.........सच........!!
ReplyDeleteमां वाकई मां ही होती हैं.....खूबसूरत कविता
ReplyDeleteबधाई हो
माँ आप जैसा इस दुनिया
ReplyDeleteमें कोई नहीं
माँ आप साक्षात् इश्वर हें...............
बहुत बढ़िया!
माँ सचमुच प्यार का सागर होती हैं .....अनमोल
ReplyDeleteआपके परिवार का फोटो देखा ....बहुत अच्छा है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आपकी भावनाओं से सहमति दर्ज कराता हुआ
ReplyDeleteमैं इतना ही कहना चाहूँगा :
"माँ"
एक अक्षर में समाया महाग्रन्थ !
मेरी दिली शुभकामनाएं !!!
इष्टमित्रों और परिवार सहित आपको, दशहरे की घणी रामराम.
ReplyDeleteरामराम.