jindgi bahut gahri khai ke saman he. jisme ham ulajte hi jaate he. lakin umang honi chaheye kuch karne ki kuch banane ki.umang hame jindgi jina sikhata he.
Friday 23 January, 2009
नन्ही छाँव .............
नहीं मारो मुझे अपने गर्भ में माँ ... ...
आज मुझे जी लेने दो,
कल मैं एक नन्ही छाँव बनकर आपको ख़ुशियाँ दूँगी ... ...
आप पर कभी बोझ नहीं बनूँगी ... ...
बस आज मुझे जन्म ले लेने दो माँ ... ...
कल आपके जीवन में,
मैं बहुत सी ख़ुशियाँ भर दूँगी ... ...
इस संसार में मुझे आने से मत रोको,
क्या आप मुझे घर, परिवार, समाज के डर से मार रही हैं?
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ ... ...
आप तो चाहती हैं न माँ, मैं जन्म लूँ ... ...
तो बस आप समाज या परिवार की परवाह मत करो ... ...
क्या आप इतनी निष्ठुर हो सकती हैं ... ...
अपने ही अस्तित्व को गर्भ में ही मिटा देंगी ... ...
सिर्फ़ परिवार, समाज के डर से ... ...
नहीं माँ, नहीं ... ...
मैं आपके आँगन में ख़ुशियों के फूल खिला दूँगी ... ...
मैं एक नन्ही छाँव, मुझे इस संसार में आने दो माँ ... ...
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keep it up
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मार्मिक रचना. काश सभी के विचार आपसे सहमत हो जाये तो हमारा समाज इस अभिशाप से मुक्ति पा जाये.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत खूब, दिल को चू लिया आपकी इस रचना ने,
ReplyDeleteइसी तरह लिखकर तथा जवाब देकर हमें प्रोत्साहित करते रहिएगा,
दिलीप कुमार गौड़
गांधीधाम.
superb....samvedanaa aur sachhai ka adbhut mishran...kuch laaene to itni khoobsurat hai ki mere paas shad hi nahi hai iski khoobsurti darshaane ko.....great yaar..aapne dikha diya ki yuvao me sirf josh nahi samvednaa bhi hai..josh ke saath samvedanseelta bhi bhadi hui hai.
ReplyDeleteनन्हीं छाँव
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक और संवेदना सम्पन्न
कविता है.
प्रस्तुति के लिए बधाई.
बचीं तो 'कल्पना'बन कर उडेंगी
अजन्मी बेटिया भी अम्बरों तक
उफ़ ,क्या प्रस्तुती है
ReplyDeleteI Heads off you
बहुत अच्छे विचारों की मल्लिका है आप ऐसे ही विचारों को लोगो से बाटते रहिये ,हमारी सुभकामनाये सदैव आपके साथ रहेंगी
मैं एक नन्ही छाँव, मुझे इस संसार में आने दो माँ ...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक व्यथा.
बधाई